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________________ प्रतिसंलीनता तप ३६५ युक्तचन व, दूसरे के दिल पर चोट लगाने वाला वचन, किसी का मजाक व निंदा करने वाला वचन, भ्रम फैलाने वाला वचन - यह सब असत्य व अशुभ वचन है, सत्य के साधक के लिए त्याज्य है । इसके अतिरिक्त अधिक वोलना निरर्थक बकवास करना, तथा मर्मघातक बोलना तू-तू जैसे अभद्र शब्दों का प्रयोग करना, तुच्छ तथा अशिष्ट भोपा बोलना" कलह व झगड़ा बढ़ाने वाला वचन (भले ही सत्य क्यों न हों) ये सब प्रकार के वचनअसत्य एवं अकुशल वचन हैं । तथागत बुद्ध ने भी असत्य वचन के चार रूप बताते हुए कहा है- झूठ, चुगली, कठोर वचन और बकवास ये-चारों प्रकार के वचन मिथ्या वचन है।" अकुशल वचन निरोध में इन सब प्रकार के वचनों का त्याग करना चाहिए, तथा विवेक पूर्वक, विचार कर सत्य वचन बोलना चाहिए। जैन आचार्यों ने तो यहां तक कहा है कि-जिस भापा को बोलने पर चारित्र की शुद्धि होती हो, वह भापा सत्य है, इसके अतिरिक्त जिस भापा के प्रयोग से चारित्र दूपित होता हो, वह भापा चाहे सत्य ही क्यों न हो, असत्य ही मानी जायेगी।" भाषा-प्रयोग में शब्दों का महत्व नहीं, भावना और विवेक का महत्व है । हां शब्दों का प्रयोग करते समय भी उसकी सुन्दरता, श्रेष्ठता और उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए । शास्त्र में कहा है दिट्ठमियं असंदिद्ध पडिपुन्न विअंजियं अयंपिर मणुविरगं मासं निसिरअत्तवं ।' १ दशवकालिक ७.५४ २ सूत्रकृतांग १३१४१२३ ३. उत्तराध्ययन ११२५ ४ सूपकृतांग ११६२७ ५ सम्मृतांग ११२४१२१ ६ दशवकालिक १०१७ ७ मन्तिमनिकाय ३१७११ ८ दशकालिक जूणि ७ (जिनदारा) ६. दलिया १४६
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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