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प्रतिसंलीनता तप
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होकर क्रोधोन्मत्त हो उठे और मन-ही-मन शत्रु संहार में जुट गये । गौशालक के कटुवचनों से ( मजाक से ) वैश्यायन वाल तपस्वी क्रुद्ध हो उठा था और उस पर तेजोलेश्या छोड़कर भस्म कर डालने को तत्पर हो गया ।
समझ कर हटा देने
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२ स्वार्थपूर्ति में वाघा पड़ने से - मनुष्य स्वार्थ- प्रिय होता है, अपना स्वार्थ साधने के लिए गधे को भी बाप बना लेता है, और जब कोई उसके स्वार्थ में वाधा पहुंचाता है तो वह उसे पथ का रोड़ा को क्रोधाकुल हो उठता है— रावण को विभीषण ने बहुत समझाया था, सीता को लौटा दे। वह उसकी दुश्चेष्टा को पूरी नहीं होने देना चाहता था, तव रावण विभीषण जैसे भाई पर भी क्रुद्ध होकर उसे राज्य से निकाल देता है । सोमिल ब्राह्मण ने गजसुकुमाल को साधु बने देखा तो सोचा - मेरी पुत्री का जन्म इसने विगाड़ दिया, बस, इस क्षुद्र स्वार्थ ने उसे क्रुद्ध कर दिया और महा तपस्वी के सर पर अंगारे भर दिये !
३ अनुचित व्यवहार के कारण - मनुष्य सदा ही सम्मान और योग्य व्यवहार की अभिलापा रखता हैं, वह न अपना अपमान सह सकता है, और न अपने परिवार, देश और धर्म का । जव उसकी आँखों के सामने अपनी इज्जत, अपनी मां बहनों की इज्जत, देश व धर्म का गौरव मिट्टी में मिलता दीखता है तो वह क्रुद्ध सिंह की तरह हुंकार उठता है । यादव कुमारों ने द्वैपायन ऋषि का अपमान किया, तो ऋषि ने क्रुद्ध होकर द्वारिका को भस्म कर डालने का संकल्प कर डाला | औरंगजेव की सभा में जब उसके सेनापति ने राठोड अमरसिंह को कहा कि ये राजपूत लोग 'गवार' हैं तो 'ग' तो कहा, और 'वार' कहने ही नहीं पाया कि चमनमाती कटार निकल पड़ी और सेनापति की गर्दन उड़ा गई। यह क्रोध अनुचित व्यवहार व अपमान के कारण उत्पन्न हुआ ।
४ वहम के कारण - कभी-कभी मनुष्य वहम का शिकार हो जाता है । कुछ ऐसी बातें सुनता है, दृश्य देखता है जो वास्तव में सही नहीं होते, कान और अंस उसे धोखा दे जाते हैं, नम से बुद्धि विपरीत हो जाती है और वह क्रोध में आकर अनर्थ कर डालता है । भ्रम में भी अनुचित व्यवहार, भय,