________________
जैन धर्म में तप
२ वस्तु — घर अथवा उपयोग में आने वाली सचित्त-अनित्त आदि वस्तु के कारण क्रोध उत्पन्न हो सकता है ।
३ शरीर-- शरीर के कारण- कुरूप शरीर, शरीरगत रोग आदि के कारण क्रोध की उत्पत्ति होनी संभव है ।
४ उपधि - उपकरण, वस्त्र, पात्र आदि के कारण क्रोध आ सकता है । इसी के साथ क्रोध के चार निमित्त और बताये है-जैसे
१ आत्म-प्रतिष्ठित —कभी कभी अपनी भूल के कारण ही क्रोध आ जाता है ।
२ पर प्रतिष्ठित - कभी दूसरे की भूल, दुर्वनन आदि के कारण क्रोध आ जाता है ।
३ तदुभय-प्रतिष्ठित -- अपनी भूल भी रहे और दूसरे का निमित्त भी । दोनों मिलने से क्रोध आ जाता है ।
४ अप्रतिष्ठित ' - बिना किसी निमित्त के ही क्रोध की उत्पत्ति हो जाती है ।
वास्तव में इन शास्त्रीय कारणों के साथ कुछ व्यावहारिक कारण भी है जिनके कारण मनुष्य क्रोध करता है, मन में क्रोध को उत्पत्ति होती है । पांच कारण ऐसे हैं, जिन्हें हम क्रोधोत्पत्ति में निमित्त पाते हैं
३२८
१ दुर्वचन के कारण कटुवचन कहने से क्रोध या जाता है। शास्त्र में बताया है— कटुवचन वैर का कारण होता है-"वाया तुस्तानि येराणु बंधीणी "" - दुरुक्त वचन से वैर बंधता है | कटुक कठोर वचन कानों में ती शूल से सुनते हैं, उनसे मन उद्विग्न हो उठता है- "फन्नं गया दुम्मणियं जगति 3 ऐसे कटुक, कठोर घातक, व्यंग्य वचन सुनने से क्रोध क उठता है, जैसे दुर्योधन के दुर्वचनों से श्री कृष्ण को क्रोध आ गया था। दुग दूत के दुर्वचन सुनकर प्रसमचन्द्र राजपि जैसे ध्यानयोगी भी व्यान
"
१ स्थानांग सूत्र ४१२४६
२ दशकालिक ३७
३
Etle
?!