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________________ ३२६ ... जैन धर्म में तप वस, इसबार महात्माजी का पारा खूब तेज हो गया। पास ही में हाथ में लेने की छड़ी पड़ी भी, उठाकर बोले-वेवकूफ ! तीन-तीन वार नाम बताया फिर भी याद नहीं रखा ! सिर में पत्थर भरे हैं ? ठहर अभी बताता हूं ! छड़ी पटक कर बोले-सुनले ! मेरा नाम है शीतलदास ! शीतलदास ! धनारसीदास जी हंसकर बोले-महाराज | बस अब नहीं भूलूंगा ! अब पता चल गया-तुम्हारा असली नाम शीतलदास नहीं, क्रोधीदार है। तो यह दूसरी श्रेणी के मनुष्य होते हैं, जो पहले शांत दीखते हैं और बाद में फ्रोध में भाभड़ाभूत हो जाते हैं । ३. तीसरी श्रेणी के प्रशांत मनुष्य होते हैं जो हमेशा महासागर की तरह प्रशांत रहते हैं । उन्हें कितने ही दुर्वचन कहो, अपमान करो, ठेले मारी, पत्थर मारो फिर भी कभी क्रोध नहीं करते। भगवान महावीर की तरह, मैतार्य, गजसुकुमाल और हरिकेशीवल मुनि की तरह लोग उन्हें मरणात कप्ट भी देते हैं फिर भी उनकी दृष्टि में वही शांति का अमृत छलकता रहता है, मन में शीतल लहरें उठती रहती हैं- इन्हीं के लिए शास्त्र में कहा है-- . महापसाया इसिणो हवंति, . न हु मुणी फोबपरा हवंति । ऋपिणन महान प्रसाद वाले होते हैं,वे कभी भी गुद्ध नहीं होते ! महासागर में जब भी पत्थर पोको तब भी वह शीतल लहरें उछाल कर आपको शांत करने का प्रयत्न करेगा, भाग नहीं उगलेगा। इसी प्रकार प्रापिजन, महापुरुष प्रोध करने वाले पर भी शांति की वर्षा करते हैं, प्रेम का उपदेश देते है। स्वामी दयानन्द जी को मुछ दुष्ट लोगों ने घायल कर दिया था, तब नमो मे थानेदार ने बदमाशों को पकड़कर स्वामी जी के सामने हाजिर हिा----स्वामी जी ! हग बदमागों को आप जो कहें नही नमागा! ' नोट की मोटा अनुभव को भी स्वामी तिने माग सोद--- "गेकार माहब ! मांगों को छायो।" आश्चमार यानेदार में पा---.' स्सामीनी पार पा रहे हैं ?" .
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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