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रम-परित्याग तप
इसी के साथ नुच्छाहार-~-जली हुई रोटी आदि के मुख और भी भेद मिलते हैं। किसी-किसी आचार्य ने इन नौ भदों का विस्तार कार १४ भेद भी
इस प्रकार भोजन में रस, स्वाद, विनाई आदिका तयार गरी साधर 'रस-परित्याग' तप की अनेक प्रकार में साधना यार मकता है। सपरित्याग का मूल उद्देश्य है-भोजन के प्रति अनासक्त भाव । परम व स्वादिष्ट भोजन प्राप्पा मारने को भी इच्छा न हो, और न ऐमा मयुक्त भोजनमानेको लालसा हो । बल्कि शिक्षाची में या (गृहल्य के लिए घर में) गज में जो भोजन प्राप्त हो गया उसे गरीर चलाने की लिए साना से पान पर मरहम पट्टी की जाती हो, उसी एष्टि में भूर तो जान मारने गो नियनीजन करना--लक्ष्य जीवन में प्राप्त गारमा मानियाग गोमानी माधना।