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रस-परित्याग तप
२ मधुर--मीठा
३. आम्ल
- एन्हा
४ तिक्त-तीमा
2. कापाय -कला
६ लवण -नमकीन
इन रसों के संयोग से भोजन मधुर जीन को प्रिय लगता है, खाने से मन में सरम भोजन होने के कारण मनुष्य भूग से
अधिक भीसा जाता है ।
इन छह रनों के अलावा कुछ रस ऐसे भी है जो भोजन को स्पष्ट बनाने के सामना गरिष्ट व पौष्टिक भी बना देते है । सुपाच्य लग्न को दुष्पान्य बनाते हैं । हनके आहार को भारी बनाते हैं । क्तिव कर्जा (मकेलोरी) देने वाले बाहार को विकारोजक भी बना देते है। नका है
को
लिए (पप) की
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पारा वितिकरा नराणं---+
म प्राय: दीपिन्वतेजनापेक्षा होते हैं। इसलिए जन रसों को 'विशति' (गिम) कहा जाता है। जैसे पीवी, आदि मधु क नहीं है, रितु विजय ही है, है। है-इश
आदि की भांति
को प्राकृतिक
की मग केस
जामवाल
बनता है, स्वादिष्ट लगता हैममता व प्रीति होती है।
जैन गुणो मे उसमे
(नि) की परिभाषाएँ
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है
में
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हैगामे में
विमा कके अधिक सेवन)
मे जाता है --सी के सपने में भी