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जैन धर्म में आप
चक्षुर्वचात् मनोदद्यात् याचं दद्या तच्च सूनृताम् ।
अनुबजेदुपासीत स यज्ञः पंचदक्षिणः ।। घर पर आये हुए अतिथि का पांच प्रकार से स्वागत करना चाहिए, अतिथि को आते देख कर प्रफुल्लित आँखों से उसका स्वागत कारे, फिर प्रसन्न मन से मीठी वाणी बोले, किस वस्तु को उसे आवश्यकता है यह जाने
और उस वस्तु को देकर उसकी सेवा करे, जब अतिथि इच्छा पूर्ण होने पर वापस जाने लगे तो घर के बाहर तक उसे छोड़ने के लिए जाए-~-इन पांचों विधियों से अतिथि का सत्कार करना अतिथियज्ञ की सच्ची दक्षिणा है।
तो इस प्रकार दाता अपनी शुद्ध एवं प्रफुल्लित भावनाओं के साथ भिागश्रमण को भिक्षा देवे और भिक्षाचरी के तीन अंगों को पूर्ण करें। जब यह तीनों अंग पूर्ण होते हैं तभी भिक्षाचरी अपने पूर्ण एवं अलौरिया फल यो देने में सफल होती है।
3 महामाया
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