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और रसों में गृद्ध हो गये । व गढ़िए- मनोज्ञ असन पान
मणुन सि असस पान खाइम साइमंसि मुछिए सादिम स्वादिम में गृद्ध हो गए, मूहि हो ए । बस, रस लोलुपता ने विचारों को झकझोर दिया मन को बदल दिया और वर्ष तक जो विचार ? हजार हजार वर्ष की तपस्या खोकर वापस संसार में जाकर फंस गये। तो उनके मन पर यह बुरा परिणाम किस बात का हुआ नहीं बदले वे कुछ दिनों के सरस-स्वादिष्ट भोजन आदि से बदल गये ।
ओर
गेही वन तीन दिवस आमिप आहार कर ।
सप्तमी नरक गयो भारी दुःख खान पै ।"
सिर्फ तीन दिन संसार में आमिष आदि उत्तेजक आहार कर तीव्र भाव से भरकर सातवीं नरक में गया ।
बताना यह है कि उत्तेजक और राजसी भोजन का मन पर कितना
गहरा प्रभाव पड़ता है |
शुद्धि के
महाभारत में भी भोजन विवेक का एक उदाहरण हमारे सामने आता है । श्रीकृष्ण जब शान्तिदूत बनकर दुर्योधन को समझाने के लिए हस्तिनापुर जाते हैं कि तुम युद्ध मत करो, युद्ध से कुल का सर्वनाम हो जायेगा, केवल पाण्डवों को पांच गांव देकर इस विनाश लीला को टाल
मिठाइयों के पाल सजाकर
दो । तब दुर्योधन श्रीकृष्ण के स्वागत सत्कार रसता है, भोजन का आग्रह करता है, किन्तु श्रीकृष्ण उस दुष्ट के घर का एक कण भी मुँह में नहीं लेते। क्योंकि उनका अन्नपाका पाप का अन्नाने से बुद्धि भी भ्रप्ट हो जाती है, इसलिए दुर्योधन के मेवे मिष्टान छोड़कर विदुरजी के घर गये और वहां विदुर पत्नी को ह काकी ! भूख लगी है ! कुछ खिलाओ, तो वह भाव
आई, छिलके उतारने लगी और श्री कृष्ण के प्रेम में ऐसी पान हुई ि छिलके तो श्रीकृष्ण को देने
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सरायर केसरी ग्रन्थावली पृ० ३२०
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