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किन्तु श्री कृष्ण को वे छिलके भी बहुत मोठे और स्वादिष्ट लगे । तो श्री कृष्ण ने ऐसा क्यों किया ? इसीलिए कि पापी का अम्न कण भी मुँह में लेने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, जैसी कि भीष्म पितामह जैनो को भी दुर्योधन का जम जाने से हो गई । इसलिए भोजन में वन की पवित्रता, शुद्धता, स्वच्छता और सात्विकता का विचार रखना बहुत ही आवश्यक है । गांधी जी कहा करते थे "जाहार सुधारिये, स्वास्थ्य अपने आप सुधर जायेगा ।" छांदोग्योपनिषद् के इस कथन पर भी गांधी जी का बहुत बल या
आहारशुद्धी सत्यशुद्धिः सत्यशुद्धो या स्मृतिः । सर्वप्रथीनां
स्मृतिलम्भे
विमोक्षः ।
आहार की शुद्धि रहने पर अन्तःकरण - अर्थात् मन भी पवित्र रहता है, मन पवित्र रहने पर बुद्धि पवित्र और स्थिर रहती है, बुद्धि स्थिर रहने पर आत्मा में ज्ञानको ज्योति प्रज्वलित हो उठती है और ज्ञान मोह की समस्त ग्रन्थियां खुल जाती है । तो वन्धुजी ! बुद्धि की स्थिरता और पवित्रता जीवन में बहुत ही आवश्यक बात है, यदि बुद्धि भ्रष्ट हो गई तो सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा - बुद्धिनाशात् प्रणश्यति (गीता २२६३) वृद्धि को ि व संतुलित रखने के लिए आहार को संतुलित और शुकराना आवश्यक है । इसीलिए हमने यहां पर बाहार शुद्धि की चर्चा की है। बाहार जितना वाया, सात्विक होगा मन उतना ही शांत और स्थिर रह गयेगा ।
लगगन तप
आहार का उद्देश्य
*
किंतु
यह बात नहीं है कि बाहार के बिना रह गया सभी लोग शरीर बनाने के लिए हो आहार करते है ? बहुत से गोग
के लिए ही हारते है।
जिनके लिए जिले रहते हैं। ऐसे मनुष्यों का है, भोजन और नाया है
के भो भी बर्बाद कर
के लिए नहीं,
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लिए भोजन नहीं
के जीवन
स्वाद !
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