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अभिमान
१. बालजणो पगब्भई।
—सूत्र० १।११।२ अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। २. अन्नं जणं पस्सति बिंबभूयं ।।
-सूत्र० १११३८ अभिमानी अपने अहंकार में चूर होकर दूसरों को सदा बिम्बभूत
(परछाई के समान तुच्छ) मानता है । ३. अन्नं जणं खिसइ बालपन्ने ।
-सूत्र० १३१३३१४ जो अपनी प्रज्ञा के अहंकार में दूसरों की अवज्ञा करता है, वह मंदबुद्धि (बालप्रज्ञ) है।
सेलथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठ जीवे, कालं करेइ णेरइएसु उववज्जति ।
-स्थानांग ४२ पत्थर के खम्भे के समान जीवन में कभी नहीं झुकनेवाला अहं
कार आत्मा को नरकगति की ओर ले जाता है । ५. माणविजए णं मद्दवं जणयई।
-उत्तराध्ययन २९६८ अभिमान को जीत लेने से मृदुता (नम्रता) जागृत होती है।