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कषाय
१४. कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुय सील तवो जलं।
-उत्तराध्ययन २३६५३ कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) को अग्नि कहा है। उसको बुझाने के लिए श्रुत [ज्ञान], शोल, सदाचार और तप जल के समान है।
१५ मसारस्स उ मूलं कम्म, तस्स वि हुंति य कसाया।
-आचारांगनियुक्ति १८६ संसार का मूल कर्म है और कर्म का मूल कषाय है।