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जनधर्म की हजार शिक्षाएं क्रोध, मान, माया और लोभ-ये चारों कषाय पाप की वृद्धि करने वाले है, अतः आत्मा का हित चाहनेवाला साधक इन दोषों का परित्याग कर दे।
१०.
कोहो पोइ पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्व विणासणो ।
-दशवकालिक ८।३८ क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का, माया मैत्री का और लोभ सभी सद्गुणों का विनाश कर डालता है।
११.
उवसमेण हणे कोहं, माणं महवया जिणे । मायमज्जवभावेण, लोभ संतोसओ जिणे ॥
-दशवकालिक ८।३६ क्रोध को शान्ति से, मान को मृदुता-नम्रता से, माया को ऋजुतासरलता से और लोभ को सनोप से जीतना चाहिये ।
१२. चत्तारि कसाया मिंचंति मूलाई पुणब्भवस्स ।
-दशवकालिक ८।४० चार कषाये पुनर्जन्म रूप बेल को प्रतिक्षण सोचते रहते है। १३. अहे वयइ कोहेण, माणण अहमा गइ। माया गइपडिग्घाओ, लोभाओ दुहओ भयं ।।
- उत्तराध्ययन ६।५४ क्रोध से आत्मा नीचे गिरता है। मान से अधमगति प्राप्त करता है । माया से सद्गति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। लोभ से इसलोक और परलोक-दोनों में ही भय-कष्ट होता।