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अभयात
भयभीत व्यक्ति तप और संयम की साधना छोड़ बैठता है । भयभीत किसी भी गुरुतर दायित्व को नहीं निभा सकता है।
न भाइयव्वं भयस्स वा, वाहिस्स वा, रोगस्स वा, जराएवा, मच्चुस्स वा।
-प्रश्न० २।२ आकस्मिक भय से, व्याधि (मन्दघातक कुष्ठादि रोग) से, रोग (शीघ्रघातक हैजा आदि) से बुढ़ापे से, और तो क्या, मृत्यु से भी कभी डरना नहीं चाहिए । दाणाणं चेव अभयदाणं।
-प्रश्न० २।४ सब दानों मे अभयदान श्रेष्ठ है । ६. जो ण कुणइ अवराहे, सो णिस्संको दु जणवए भमदि ।
-समयसार ३०२ जो किसी प्रकार का अपराध नहीं करता, वह निर्भय होकर जनपद में भ्रमण कर सकता है । इसी प्रकार निरपराध-निर्दोष आत्मा ( पाप नहीं करनेवाला ) भी सर्वत्र निर्भय होकर विचरता है। अभयदाया भवाहि य ।
- उत्तराध्ययन १८।११ ___ सब को अभयदान देनेवाले बनो ! निब्भएण गतव्वं ।
-निशीथचूर्णि २७३ जीवन पथ पर निर्भय होकर विचरण करना चाहिए।
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