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३.
४.
५.
६.
दाणाणसेठं अभयप्पयाणं ।
अभयदान ही सर्व श्र ेष्ठ दान है ।
अभयव्रत
भाइयव्वं, भीतं खु भया अइति लहुयं ।
भीतो अबितिज्जओ मणुस्सो ।
--सूत्र० १।६।२३
भय से डरना नही चाहिए । भयभीत मनुष्य के पास भय शीघ्र
आते है |
भयभीत मनुष्य किसी का सहायक नही हो सकता । भीतो भूतेहिं धिप्पइ ।
भयाकुल व्यक्ति स्वयं भूतो का शिकार होता है । भीतो अन्न पिह भेसेज्जा ।
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स्वय डरा हुआ व्यक्ति दूसरो को भी डरा देता है ।
भीतो तवसंजमं पि हु मुएज्जा । भीतो य भर न नित्थरेज्जा ।
- प्रश्न० २।२
- प्रश्न० २१२
- प्रश्न० २।२
प्रश्न २२
- प्रश्न० २।२