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________________ अपरिग्रह ५५ १२. सर्वभावेषमूळयास्त्यागः स्यादपरिग्रहः । -त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित ___सभी पदार्थों पर से आसक्ति हटा लेना ही अपरिग्रह व्रत है। १३. अतिरेगं अहिगरणं । -ओघनि० ७४५ आवश्यकता से अधिक एवं अनुपयोगी उपकरण (सामग्री) रखना अधिकरण (क्लेशप्रद एवं दोषरूप) हो जाते हैं। १४., अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो। -समयसार २१२ वास्तव में अनिच्छा (इच्छामुक्ति) को ही अपरिग्रह कहा है। १५. अप्पगाहा, समुद्दसलिले सचेल-अत्येण । -सूत्रपाहुड २७ ग्राह्य वस्तु में से भी अल्प (आवश्यकतानुसार) ही ग्रहण करना चाहिये । जैसे समुद्र के अथाह जल में से अपने वस्त्र धोने के योग्य अल्प जल ही ग्रहण किया जाता है । १६. गंथोऽगंथो व मओ मुच्छा मुच्छाहि निच्छयओ। -विशेषावश्यकभाष्य, २५७३ निश्चयदृष्टि से विश्व की प्रत्येक वस्तु परिग्रह भी है और अपरिग्रह भी । यदि मूर्छा है तो परिग्रह है, मूर्छा नहीं है तो परिग्रह नहीं है। १७. आरंभपूर्वको परिग्रहः ।। -सूत्रकृतांगचूणि १।२।२ परिग्रह (धन संग्रह) बिना हिंसा के नहीं होता। १८. अत्थो मूलं अणत्थाणं । -मरणसमाधि० ६०३ अर्थ, अनर्थों का मूल है।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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