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सादियं न मुसं बूया।
-सूत्रकृतांग १८१६ मन में कपट रख के झूठ न बोलो। ८. नो छायए नो वि य लूसएज्जा।
-सूत्रकृतांग १।१४।१६ उपदेशक सत्य को कभी छिपाए नही और न ही उसे तोड-मरोड़ कर उपस्थित करे।
अलियवयण" अयसकरं, वेरकरगं""मणसंकिलेसवियरणं ।
—प्रश्नव्याकरण ११२ असत्य वचन बोलने से बदनामी होती है, परस्पर वैर बढ़ता है
और मन में सक्लेश होता है। १०. असंतगुणुदीरका य संतगृणनासका य ।
-प्रश्नव्याकरण ११२ असत्यभाषी लोग गुणहीन के गुणों का बखान करते हैं और गुणी
के वास्तविक गुणों का अपलाप करते हैं। ११. सच्चं "पभासकं भवति सव्वभावाणं ।
- प्रश्नव्याकरण २२ सत्य, समस्त भाव-विषयों का प्रकाश करनेवाला है । १२. सच्चं लोगम्मि सारभूयं, गम्भीरतरं महासमुद्दाओ।
-प्रश्नव्याकरण २।२ संसार में सत्य' ही साग्भूत है ।
सत्य महा ममुद्र से भी अधिक गंभीर है । १३. सच्चं च हियं च मियं गाहणं च ।
-प्रश्नव्याकरण २२ ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए, जो हित, मित और ग्राह्य हो।