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________________ सत्य तं सच्चं भगवं। -प्रश्नव्याकरण २।२ सत्य ही भगवान है। २. सच्चमि धिई कुव्वहा। -आचारांग १।२।३ सत्य में धृति कर, सत्य मे स्थिर हो। ३. पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि । - आचारांग १३१२३ हे मानव ! एक मात्र मत्य को ही अच्छी तरह जान ले, परख ले। ४. सच्चस्म आणाए उठ्ठिए मेहावी मारं तरइ । ___. आचारांग ॥३.३ जो मेधावी साधक सत्य की आज्ञा मे उपस्थित रहता है, वह मार मृत्यु के प्रवाह को तैर जाता है। ५. जे ते उ वाइणो एवं न ते ससारपारगा। -सूत्रकृतांग १५१३१०२१ जो असत्य की प्ररूपणा करते है, वे ससार सागर को पार नही कर सकते। ६. सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति । -सूत्रकृतांग १।६।२३ सत्य वचनों में भी अनवद्य सत्य (हिसारहित सत्यवचन) श्रेष्ठ है । ४४
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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