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________________ हिसा ४३ अदुवा अदिन्नादाणं । -आचारांग ११३ हिंसा, हिंसा ही नहीं, चोरी भी है । ६२. यत्किचित् संसारे शरीरिणां दुःख शोक भय-बीजम् । दौर्भाग्यादि समस्तं तद्धिसा - संभवं ज्ञयम् ।। -ज्ञानर्णव, पृष्ठ १२० संसार में प्राणियों को जो भी दु:ख-शोक-भय, दौर्भाग्य आदि है, उनका मूल कारण हिंसा ही है। ३३. पंग कुष्ठि कृणित्वादि द्रष्ट्वा हिंसाफलं सुधीः। नीरागस्त्रसजन्तूनां हिंसा मंकल्पतस्त्यजेत् ॥ -योगशास्त्र २०१६ पंगुपन, कोढ़ीपन, कुणित्व (कुबड़ापन) आदि हिंसा के बुरे फलों को देखकर विवेकवान् गृहस्थ निरपराध त्रस जीवों की संकल्पी हिंसा का त्याग करें। ६४. पर-दुःखविनाशिनी करुणा। ' -धर्मबिन्दु ____दया, दूसरों के दुःख को दूर करनेवाली है । यदि ग्रावा तोये तरति तरणिया दयतिप्रतीच्यां सप्ताचियदि भजति शैत्यं कथमपि।। यदि क्षमापीठं स्यादुपरि सकलस्यापि जगतः, प्रसूते सत्त्वानां तदपि न वधः क्वापि सुकृतम् ॥ - सिन्दूरप्रकरण २६ यदि पानी में पत्थर तर जाय, सूर्य पश्चिम में उदय हो जाय, अग्नि ठडी हो जाय और कदाचित् यह पृथ्वी जगत् के ऊपर हो जाय तो भी हिंसा में कभी धर्म नहीं होता।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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