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जैनधर्म की हजार शिक्षाएं दयामूलो भवेद्धर्मो) दया प्राण्यनुकम्पनम् । दयायाः परिक्षार्थ गुणा शेषाः प्रकीर्तिता ।।
-आदिपुराण ॥२१ धर्म का मूल है दया। प्राणी पर अनुकम्पा करना दया है। दया
की रक्षा के लिए ही सत्य, क्षमा आदि शेष गुण बताये गये हैं। २७. अहिंसा निउणा दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो।
-दशवकालिक ६९ सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना-यही अहिंसा का
पूर्णदर्शन है। २८. सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविऊ न मरिज्जिऊं।
-दशवकालिक ६।११ समस्त प्राणी सुखपूर्वक जीना चाहते हैं। मरना कोई नहीं
चाहता। २६.
न य वित्तासए परं।
-उत्तराध्ययन २०२०
किसी भी जीव को त्रास (कष्ट) नहीं देना चाहिए। वेराणुबद्धा नरयं उर्वति ।
-उत्तराध्ययन ४२ जो वैर की परम्परा को लम्बा किये रहते हैं वे नरक को प्राप्त
होते हैं। ३१. न हणे पाणिणो पाणे भयवेराओ उवरए ।
-उत्तराध्ययन ६७ जो भय व वैर से उपरत-मुक्त हैं वे किसी प्राणी की हिंसा नहीं
करते। ३२. अणिच्चे जीवलोम्मि, किं हिंसाए पसज्जसि ?
-उत्तराध्ययन १८।११ जीवन अनिन्य है, क्षणभंगुर है, फिर क्यों हिंसा में आसक्त होते हो?