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________________ अहिंसा २०.. एग इसि हणमाणे अणंते जीवे हणइ । -भगवती ३४ एक अहिसक ऋषि की हत्या करनेवाला एक प्रकार से अनन्त जीवो की हिसा करनेवाला होता है । २१. अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणंति । -प्रश्नव्याकरण १११ कुछ लोग प्रयोजन से हिसा करते है, और कुछ लोग बिना प्रयोजन भी हिसा करते है। २२. कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति । -प्रश्नव्याकरण १११ कुछ लोग क्रोध से हिमा करते है, कुछ लोग लोभ से हिसा करते है और कुछ लोग अज्ञान से हिसा करते है । पाणवहो चंडो, रुद्दो, खुद्दो अणारियो, निग्घिणो, निसंसो, महब्भयो । -प्रश्नव्याकरण १११ प्राणवध (हिसा) चड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है, और महाभयकर है। २४. अहिंसा तस-थावर-सव्वभूयखेमंकरी। -प्रश्नव्याकरण २११ अहिसा, त्रस, और स्थावर (चर-अचर) सब प्राणियो का कुशल क्षम करनेवाली है। २५. भगवती अहिंसा""भीयाणं विवसरण । -प्रश्नव्याकरण २॥१ जैसे भयाक्रान्त के लिए शरण की प्राप्ति हितकर है, प्राणियो के लिए वैसे ही, अपितु इससे भी विशिष्टतर भगवती अहिंसा हितकर है।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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