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________________ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं करे। 'अहिंसामूलक समता ही धर्म का सार है, बस इतनी बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए। १५. वेराइं कुव्वई वेरी, तओ वेरेहिं रज्जती। -सूत्रकृतांग शा७ वरवृत्ति वाला व्यक्ति जब देखो तब वैर ही करता है। वह एक के बाद एक किये जानेवाले वैर से वैर को बढाते रहने में ही आनन्द मानता है। ते आत्तओ पासइ सव्वलोए । -सूत्रकृतांग १।१२।१८ तत्वदर्शी समग्र प्राणिजगत् को अपनी आत्मा के समान देखता है । १७. भूएहिं न विरुज्झज्जा । -सूत्रकृतांग ११५४ किसी भी प्राणी के साथ वैर-विरोध न बढ़ाये । किं भया पाणा ?.... दुक्खभया पाणा। दुक्खे केण कड़े ? जीवेणं कड़े पमाएणं ! -स्थानांग ३२ प्राणी किससे भय पाते है ? दुःख से। दुःख किसने किया है ? स्वयं आत्मा ने, अपनी ही भूल से । १९. एगं अन्नयरं तसंपाणं हणमाणे अरणेगे जीवे हणइ । -भगवती ३४ एक त्रस जीव की हिंसा करता हुआ आत्मा तत्संबन्धित अनेक जीवों की हिंसा करता है।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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