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________________ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं धीर पुरुष को भी एक दिन अवश्य मरना है, और कायर को भी। जब दोनों को ही मरना है तो अच्छा है कि धीरता-शान्तभाव से ही मरा जाय। धम्मो वत्थुसहावो। -कार्तिकेय० ४७८ वस्तु का अपना स्वभाव ही उसका धर्म है। ३६. मग्गो मग्गफलं ति य, दुविहं जिणसासणे समक्खादं । - मूलाचार २०२ जिनशासन (आगम) में सिर्फ दो ही बात बताई गई है—मार्ग-धर्म और मार्ग का फल-मोक्ष । ३७. नीचवृत्तिरधर्मेण धर्मेणोच्चः स्थिति भजेत् । तस्मादुच्चः पदंवाञ्छन् नरो धर्मपरो भवेत् । -आदिपुराण १०१११९ अधर्म से मनुष्य की अधोगति होती है और धर्म से ऊर्ध्वगतिऊंचीगति । अत: जीवन में ऊर्ध्वगति चाहनेवाले को धर्म का आचरण करना चाहिए। स धर्मो यत्र नाधर्म-स्तत्सुखं यत्र नासुखम् । तज् ज्ञानं यत्र नाऽज्ञानं, सा गतिर्यत्र नाऽगतिः । -आत्मानुशासन-१ धर्म वही है, जिसमें अधर्म न हो । सुख वही है, जिसमें असुख न हो। ज्ञान वही है, जिसमें अज्ञान न हो और गति वही है जिसमें आगति- लोटना न हो। सर्व एव हि जनानां, प्रमाणं लौकिकोविधिः । यत्र सम्यक्त्वहानिर्न, यत्र न व्रतदूषणम् ॥ श्रुतिः शास्त्रान्तरंवास्तु, प्रमाणं कात्र नः भतिः॥ -यशस्तिलक चम्पू
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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