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धम्मे अणुजुत्तो सीयलो, उज्जुत्तो उण्हो।
-आचा०नि० ११३१ धर्म में उद्यमी-क्रियाशील व्यक्ति, उष्ण =गर्म है, उद्यमहीन
शीतल-ठंडा है। २६. यस्तु आत्मनः परेषां च शान्तये, तद्भावतीर्थं भवति ।
-उत्त० नि० १२ जो अपने को और दूसरों को शान्ति प्रदान करता है, वह ज्ञान
दर्शन-चारित्र रूप धर्म भावतीर्थ है। ३०. शरीरलेश्याषु हि अशुद्धास्वपि आत्मलेश्या शुद्धा भवन्ति
-उत्त० चूणि १२ बाहर में शरीर की लेश्या (वर्ण-आदि) अशुद्ध होने पर भी अन्दर
में आत्मा की लेश्या (विचार) शुद्ध हो सकती है। ३१. देशकालानुरूपं धर्म कथयन्ति तीर्थंकराः।
-उत्त० चूणि २३ तीर्थकर देश और काल के अनुरूप धर्म का उपदेश करते हैं। ३२. सव्वसत्ताण अहिंसादिलक्खणो धम्मो पिता, रक्खणत्तातो।
-नन्दी चणि १ अहिसा-सत्य आदि धर्म सब प्राणियो का पिता है, क्योंकि वही
सबका रक्षक है। ३३. गहिओ सुग्गइ मग्गो, नाहं मरणस्स बोहेमि ।
-आतुर० ६३ मैंने सद्गति का मार्ग (धर्म) अपनालिया है । अब मैं मृत्यु से
नही डरता। ३४. धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्समरियव्वं । दुण्हं पि हु मरियव्वे, वरं खु धीरत्तेण मरिउ ।।
-आतुर० ६४