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६. असुयाणं धम्माणं सम्मं सुणणयाए अब्भुट्ट्यव्वं भवति ।
-स्थानांग अभी तक नहीं सुने हुए धर्म को सुनने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
सुयाणं धम्माणं ओगिण्हणयाए अवधारणयाएअब्भुट्ट्यव्वं भवति ।
-स्थानांग ८ सुने हुए धर्म को ग्रहण करने—उस पर आचरण करने को तत्पर रहना चाहिए। एगे चरेज्ज धम्म ।
-प्रन० २।३ भले ही कोई साथ न दे, अकेले ही सद्धर्म का आचरण करना
चाहिए।
धम्मे हरए बम्भे सन्तितित्थे.
अणाविले अत्तपसन्नलेसे । जहिं सिणाओ विमलो विसुद्धो, सूसीइओ पजहामि दोसं ॥
-उत्त० १२०४६ धर्म मेरा जलाशय है, ब्रह्मचर्य शान्तितीर्थ है, आत्मा की प्रसन्नलेश्या मेरा निर्मल घाट है। जहाँ पर आत्मा स्नान कर कर्ममल से मुक्त हो जाता है। धणेण किं धम्मधुराहिगारे ?
-उत्त० १४॥१७ धर्म की धुरा को खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है ? (वहां तो सदाचार की जरूरत है :)
एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं, न विज्जइ अन्नमिहेह किंचि ।
-उत्त० १४१४०
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