________________
धर्म
समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए।
-आचारांग शा३ ___आयं महापुरुषों ने समभाव में धर्म कहा है। २. एगा अहम्मपडिमा, जं से आया परिकिलेसति ।
-स्थानांग ११११३८ एक अधर्म ही ऐसी विकृति है, जिससे आत्मा क्लेश पाती है। ३. एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए।
-स्थानांग १२११४० एक धर्म ही ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिससे आत्मा की शुद्धि
होती है। ४. दुविहे धम्मे–सुयधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेव ।
-स्थानांग २०१ धर्म के दो रूप हैं-श्रुतधर्म तत्त्वज्ञान, और चारित्रधर्म = नैतिक आचार।
चत्तारि धम्मदाराखंती, मुत्ती, अज्जवे, महवे ।
-स्थानांग ४४ क्षमा, संतोष, सरलता और नम्रता-ये चार धर्म के द्वार हैं।