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मानव-जीवन
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चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।।
-उत्तराध्ययन ३१ संसार में चार बातें प्राणी को बड़ी दुर्लभ है-मनुष्यजन्म, धर्म का श्रवण, दृढ़श्रद्धा और संयम में प्रवृत्ति अर्थात् धर्म का आचरण । जीवा सोहिमणप्पत्ता, आययंति मणस्सयं ।
-उत्तराध्ययन ३७ संसार में आत्माएं क्रमशः शुद्ध होते-होते मनुष्यभव को प्राप्त करती हैं।
माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, नरगतिरिक्तखणं धुवं ।।
-उत्तराध्ययन ७१६ मनुष्य जीवन मूलधन है। देवगति उसमें लाभ रूप है। मूलधन के नाश होने पर नरक, तिर्यचगति रूप हानि होती है । दुल्लहे खलु माणुसे भवे ।
-उत्तराध्ययन १०१४ मनुष्य जन्म निश्चय ही बड़ा दुर्लभ है ।