SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव-जीवन २ चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।। -उत्तराध्ययन ३१ संसार में चार बातें प्राणी को बड़ी दुर्लभ है-मनुष्यजन्म, धर्म का श्रवण, दृढ़श्रद्धा और संयम में प्रवृत्ति अर्थात् धर्म का आचरण । जीवा सोहिमणप्पत्ता, आययंति मणस्सयं । -उत्तराध्ययन ३७ संसार में आत्माएं क्रमशः शुद्ध होते-होते मनुष्यभव को प्राप्त करती हैं। माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, नरगतिरिक्तखणं धुवं ।। -उत्तराध्ययन ७१६ मनुष्य जीवन मूलधन है। देवगति उसमें लाभ रूप है। मूलधन के नाश होने पर नरक, तिर्यचगति रूप हानि होती है । दुल्लहे खलु माणुसे भवे । -उत्तराध्ययन १०१४ मनुष्य जन्म निश्चय ही बड़ा दुर्लभ है ।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy