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विद्यार्जन का मार्ग
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(७) निश्चित अर्थ को धारण करता है, (८) फिर उसके अनुसार आचरण करता है। यो विद्याविनीतमतिः स बुद्धिमान् ।
-नीतिवाक्यामृत ५॥३२ जो ज्ञान एवं नम्रतायुक्त है, वह बुद्धिमान है। सुश्रूषा श्रवणं चैव, ग्रहणं धारणं तथा। ऊहोपोहोर्थविज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धी-गुणाः ।।
-अभिधानचिन्तामणि २।२२५ (१) सुनने की इच्छा करना, (२) सुनना, (३) सुनकर तत्त्व को ग्रहण करना, (४) ग्रहण किए हुए तत्त्व को हृदय में धारण करना, (५) फिर उस पर विचार करना, अर्थात् उसे तर्क की कसौटी पर कसना, (६) विचार करने के पश्चात् उसका सम्यक् प्रकार से निश्चय करना, (७) निश्चय द्वारा वस्तु को समझना, (८) अन्त में उस वस्तु के तत्त्व की जानकारी करना-ये आठ बुद्धि के गुण हैं। सम्यगाराधिता विद्यादेवता कामदायिनी।
-आदिपुराण १६६९ विद्या देवता की सम्यग्-सही विधि से आराधना करने पर वह समस्त इच्छित फल प्रदान करती है।
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