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________________ पूजा-भक्ति पूजा च द्रव्यभाव-संकोचस्तत्र करशिरः पादादिसन्यासो द्रव्यसंकोचः । भावसंकोचस्तु विशुद्धमनसो नियोगः ।। -प्रणिपातदण्डक-पडावश्यकटीका द्रव्य-भाव का संकोच करना पूजा है । वहाँ हाथ, पैर, सिर, आदि को स्थिर करना द्रव्यसंकोच है तथा विशुद्ध मन का नियोग होना भावसंकोच है। वचोविग्रह-संकोचो द्रव्यपूजा निगद्यते । तत्र मानस-संकोचो, भावपूजा पुरातनः ।। -अमितगति-श्रावकाचार वचन और शरीर का संकोच करना द्रव्यपूजा है एवं मन का संकोच करना भाव पूजा है। अहिंसा सत्यमस्तेयं, ब्रह्मचर्यमसङ्गता। गुरुभक्तिस्तपोज्ञानं, सत्पुष्पाणि प्रचक्षते ॥ -हरिभद्र-टीका २६ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, निःसंगता, गुरुभक्ति, तप और ज्ञान-ये पूजा के आठ फूल कहलाते हैं। . भक्तिः श्रेयोऽनुबंधिनी । -आदिपुराण १२७९ भक्ति कल्याण करनेवाली है
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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