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गुरु-आशा
५. गुरुवचनमनुल्लंघनीयमन्यत्राधर्मानुचिताचारात्मप्रत्यवायेभ्यः । नीतिवाक्यामृत ११ ट
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अधर्म, अनुचित आचार ( नीतिविरुद्ध प्रवृत्ति) और अपने सत्कर्त्तव्यों में विघ्न की बातों को छोड़कर बाकी सभी स्थानों में शिष्य को गुरु के वचन का उल्लंघन नहीं करना चाहिए ।
गुर्वाज्ञाकरणं हि सर्वगुणेभ्योऽतिरिच्यते ।
- त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र ११८
गुरु आज्ञा का पालन करना सब गुणों से बढ़कर है । हितमवगणयेद् वा कः सुधीराप्तवाक्यम् ।
- आदिपुराण २।१६१
कौन बुद्धिमान है, जो भगवान के हितकारी वचनों की अवज्ञा करेगा ?