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गुरु-प्राज्ञा
निद्द सं नाइ वट्ट ज्जा मेहावी।
-आचारांग ॥६ विज्ञ-बुद्धिमान कभी भी भगवआज्ञा व गुरुआज्ञा का उल्लंघन नहीं करे।
आणातवो आणाइसंजमो, तहय दाणमाणाए । आणारहिओ धम्मो, पलालपूलव्व पडिहाई ॥
-संबोधसत्तरि ३२ आज्ञा में तप हैं, आज्ञा में संयम है और आज्ञा में ही दान है । आज्ञारहित धर्म को ज्ञानी पुरुष धान्यरहित घास के पूलेवत् छोड़ देता है। आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं ।
-आचा०६३ भगवान की आज्ञा के अनुसार आचरण करनेवाले को भय कहां? वह तो अकुतोभय है।
अपरा तीर्थकृत्सेवा, तदाज्ञापालनं परम् । आज्ञाराद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय च ॥
-सम्बोधि ७५ तीर्थंकर की पर्युपासना की अपेक्षा उनकी आज्ञा का पालन करना विशिष्ट है। आज्ञा की आराधना करनेवाले मुक्ति को प्राप्त होते हैं और उससे विपरीत चलनेवाले संसार में भटकते हैं।