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विनय-अनुशासन
आणानिद्दे सकरे, गुरुणमुववायकारए । इंगियागारसम्पन्ने, से विणीए त्ति वुच्चई।
-उत्तरा० ११२ जो गुरुजनों की आज्ञाओं का यथोचित पालन करता है, उनके निकट सम्पर्क में रहता है एवं उनके हर संकेत व चेष्टा के प्रति
सजग रहता है-उसे विनीत कहा जाता है । २. रायणिएसु विणयं पउजे ।
-दशव० ८.४१ बड़ों (रत्नाधिक) के साथ विनयपूर्ण व्यवहार करो। ३. जे आयरिय-उवज्झायाणं, सुस्सूसा वयणं करे। तेसि सिक्खा पवढंति, जलसित्ता इव पायवा ।।
-दशवै० ६।२।१२ जो अपने आचार्य एव उपाध्यायों की सुश्रु षा-सेवा तथा उनकी आज्ञाओं का पालन करता है, उसकी शिक्षाएं (विद्याए) वैसे ही
बढ़ती है, जैसे कि जल से सीचे जाने पर वृक्ष । ४. विवत्ती अविणीयस्स, संपत्ती विणीयस्स य ।
-वशव० ६॥२२२२ अविनीत विपत्ति (दुःख) का भागी होता है और विनीत सम्पत्ति (सुख) का।