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सार्थक परिभाषाएँ
१. जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहि, तं वयं बूम माहणं ।।
-उत्तराध्ययन २५।२७ ब्राह्मण वही है जो संसार में रहकर भी काम भोगों से निलिप्त रहता है, जैसे कि कमल जल में रहकर भी उससे लिप्त नहीं होता। ___ न वि मुडएण समणो, न ओंकारेण बंभणो। न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो।।
-उत्तराध्ययन २५३३० सिर मुड़ा लेने से कोई श्रमण नहीं होता, ओकार का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, जंगल मे रहने से कोई मुनि नहीं होता और कुशचीवर-वल्कल धारण करने से कोई तापस नहीं होता।
समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो । नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो ।।
-उत्तराध्ययन २५५३२ समता से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि और तपस्या से तापस कहलाता है।
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