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________________ २२२ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं २८. विभिन्न मिथ्यादर्शनों का समूह अमृतसार-अमृत के समान क्लेश का नाशक, और मुमुक्ष, आत्माओं के लिए सहज, सुबोध भगवान जिनप्रवचन का मंगल हो। जेण विणा लोगस्स वि, ववहारो सव्वहा ण णिघडइ । तस्स भुवणेक्कगुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स ।। -सन्मतितर्क ३७० जिसके बिना विश्व का कोई भी व्यवहार सन्यग-रूप से घटित नहीं होता है, अतएव जो त्रिभुवन का एक मात्र गुरु (सत्यार्थ का उपदेशक) है, उस अनेकान्तवाद को मेरा नमस्कार है। २६. णत्थि विणा परिणाम, अत्थो अत्थं विणेह परिणामो। -प्रवचनसार ।११० कोई भी पदार्थ बिना परिणमन के नहीं रहता। और परिणमन भी बिना पदार्थ के नहीं होता। ३०. सव्वे वि होंति सुद्धा, नत्थि असुद्धो नयो उ सठाणे । -व्यवहारभाष्य पीठिका ४७ सभी नय विचार-दृष्टियां) अपने अपने स्थान (विचारकेन्द्र) पर शुद्ध है। कोई भी नय अपने स्थान पर अशुद्ध (अनुपयुक्त) नहीं है। १ जनदर्शन को विभिन्न एकांतवादी मिथ्यादृष्टियों का 'सम्यग् एकीभाव' माना गया है, अर्थात् काल, द्रव्य क्षेत्र आदि का अलग अलग आग्रह मिथ्यादृष्टि है, और पांचों का समवाय, सम्मिलित चिंतन सम्यक्दृष्टि है इसलिए-'मिच्छत्तमयं समूह सम्म' (विशेषा० ९५४) मिथ्यादृष्टियों का समूह सम्यक्दृष्टि हैकहा है।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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