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वीतरागता
विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो ।
- आचारांग ११२/२
जो साधक कामनाओं को पार कर गए हैं, वस्तुतः वे ही मुक्तपुरुष हैं।
लोभमलोभेण दुगु छमाणे, लद्ध े कामे नाभिगाइ ।
- आचारांग १।२।२
जो लोभ के प्रति अलोभवृत्ति के द्वारा विरक्ति रखता है, वह और तो क्या, प्राप्त कामभोगों का भी सेवन नही करता है ।
अणोहंतरा एए नो य ओहं तरित्तए ।
अतीरंगमा एए नो य तीरं अपारंगमा एए नो य पारं
गमित्तए । गमित्तए ।
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- आचारांग १।२।३
वे
जो वासना के प्रवाह को नहीं तैर पाए, नही तैर सकते ।
जो इन्द्रियजन्य कामभोगों को पार कर तट पर नहीं पहुंचे हैं, वे संसार - सागर के तट पर नहीं पहुंच सकते ।
ससार के प्रवाह को
जो राग-द्वेष को पार नहीं कर पाए हैं, वे संसार - सागर को पार नहीं हो सकते।
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