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________________ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं जीवन पानी के बुलबुले के समान और कुशा की नोंक पर स्थित जलबिन्दु के समान चंचल है । २१. जम्मं मरणेण समं, संपज्जइ जुव्वणं जरासहियं । लच्छी विणाससहिया, इय सव्वं भंगुरं मुणह ।। -कार्तिकेयानप्रेक्षा ५ जन्म के साथ मरण, यौवन के साथ बुढ़ापा, लक्ष्मी के साथ विनाश निरन्तर लगा हुआ है । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु को नश्वर समझना चाहिए। २२. मा एयं अवमन्त्रंता अप्पेण लुम्पहा बहुं । -सूत्रकृतांग १२३४७ सन्मार्ग का तिरस्कार करके तुम अल्पवैषयिक सुखों के लिए अनन्त मोक्ष सुख का विनाश मत करो।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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