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२०५ १०. धिती तु मोहस्स उवसमे होति ।
-निशीथभाज्य ८५ मोह का उपशम होने पर ही धृति होती है।
सुक्कमूले जघा रुग्वे, सिच्चमाणे ण रोहति । एवं कम्मा न रोहंति, मोहणिज्जे खयंगते ।।
-दशा तस्कंध ५।१४ जिस वृक्ष की जड़ सूख गई हो, उसे कितना ही सींचिए, वह हरा-भरा नही होता। मोह के क्षीण होने पर कर्म भी फिर हरे
भरे नहीं होते। १२. मूलसित्ते फलुप्पत्ती, मूलघाते हतं फलं ।
-ऋषिभाषितानि श६ मूल को सींचने पर ही फल लगते हैं । मूल नष्ट होने पर फल भी
नष्ट हो जाता है। १३. मोहमूलाणि दुक्खाणि ।
-ऋषिभाषितानि २७ संसार में समस्त दुःखों का मूल मोह है।