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________________ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं दुक्खं हयं जम्म न होइ मोहो, __ मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाई ।। -उत्तराध्ययन ३२१८ जिसको मोह नहीं होता, उसका दुःख नष्ट हो जाता है । जिसको तृष्णा नही होती उसका मोह नष्ट हो जाता है। जिसको लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन (अपरिग्रही) है, उसका लोभ नप्ट हो जाता है । अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे, से केयणं अरिहए पूरइत्तए । -आचारांग ११३३२ यह मनुष्य अनेक चित्त है, अर्थात् अनेकानेक कामनाओं के कारण मनुष्य का मन बिखरा हुआ रहता है। एगं विगिंचमाणे पुढो विगिचइ ।। -आचारांग १।३।४ जो मोह को क्षय करता है, वह अन्य अनेक कर्म विकल्पों को क्षय करता है। ८. असंकियाइं सकंति, संकिआइं असंकिणो । सूत्रकृतांग १११।२।१० मोहमूढ़ मनुष्य जहाँ वस्तुतः भय की आशंका है, वहां तो भय की आशंका करते नही है और जहाँ भय की आशंका जैसा कुछ नही है, वहां भय की आशंका करते है। ६. कीरदि अज्झवसाणं, अह ममेदं ति मोहादो। -प्रवचनसार ३३१७ मोह के कारण हो मैं और मेरे का विकल्प होता है ।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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