________________
मोह
मगेहेण गब्भ मरणाड एइ ।
-आचारांग ॥३ मोह मे जीव बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त होता है। मोहो विण्णाण विवच्चासो।
-निशीथणि २६ विवेक ज्ञान का विपर्याम ही मोह है।
इत्थ मोहे पुणो पुणो मन्ना, नो हव्वाए नो पाराए ।
-आचारांग ।।२ बार-बार मोहग्रस्त होनेवाला माधक न इस पार रहता है न उस पार; अर्थात् न इमलोक का रहता है न परलोक का । जहा य अंडप्पभवा बलागा।
अंडं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खू तण्हा, मोहं च तण्हाययणं वयंति ॥
-उत्तराध्ययन ३२॥६ जिस प्रकार बलाका (बगुली) अण्डे से उत्पन्न होती है और अण्डा बलाका से, इसी प्रकार मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है और तृष्णा मोह से।
२०३