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१५.
जैनधर्म की हजार शिक्षाएं
श्रीणि पातकानि सद्यः फलन्ति - स्वामिद्रोहः स्त्रीवधो बालवधश्चेति ।
स्वामीवध, स्त्रीवध और बच्चे का जिनका कुफल मनुष्य को इसोलोक में
- नीतिवाक्यामृत २७/६५
वध – ये तीन महापाप हैं,
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तत्काल भोगना पड़ता है ।
१६. अहियं मरणं अहियं जीवियं पावकम्मकारीणं । तमिसम्मि पडंति मया, वेरं बड्ढति जीवंता ॥
- उपदेशमाला ४४४
पापियों का जीना और मरना- दोनों अहितकारी है, क्योंकि वे मरने पर अन्धकार - दुर्गति में पड़ते हैं और जीवित रहकर प्राणियों के साथ वैर बढ़ाते हैं ।