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जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ माया-लोहितो रागो भवति । कोह-माणेहितो दोसो भवति ।।
-निशीथचूणि १३२ माया और लोभ से राग होता है। क्रोध और मान से द्वेष होता है।
खीरे दूसिं जधा पप्प, विणासमुवगच्छति । एवं रागो व दोसो य, बंभचेर विणासणो॥
-ऋषिभाषितानि ३७ जरा-सी खटाई भी जिस प्रकार दूध को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार राग-द्वप का संकल्प संयम को नष्ट कर देता है ।