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२.
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४.
रागो य दोसो वि य कम्मबीय, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं,
दुक्खं च जाईमरणं वयंत ॥
राग-द्वेष
दुविहे व घे,
पेज्जबंधे चेव दोसबंधे चेव ।
- उत्तराध्ययन ३२/७
कर्म मोह से उत्पन्न
राग और द्वेष ये दो कर्म के बीज हैं। होता है । कर्म ही जन्म-मरण का मूल है और जन्म-मरण ही वस्तुतः दुःख है ।
- स्थानांग २/४
बन्धन के दो प्रकार है - प्रेम का बन्धन, और द्वेष का बन्धन ।
रागम्स हेउ ममरणुन्नमाहु, दोमस्य हेउ अमरणुन्नमाहु |
उत्तराध्ययन ३२/३६
मनोज शब्द आदि राग के हेतु है और अमनोज्ञ द्वेप के हेतु ।
द्वेष उपगमत्यागात्मकेविकारे ।
-उत्तराध्ययन टीका ६ उपशमभाव के त्यागरूप आत्मा के विकार को द्वेष कहते हैं ।
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