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कर्म-अकर्म
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१७. कर्मभीताः कर्माण्येव वर्धयन्ति ।
-सूत्रकृतांगचूणि १२१२ कर्मो से डरते रहनेवाले प्राय. कर्म को ही बढाते रहते है ।
जीवाण चेयकडा कम्मा कज्जति, नो अचेयकडा कम्मा कज्जति ।
-भगवती १६०२ आत्माओ के कर्म चेतनाकृत होते है, अचेतना-कृत नही । हेउप्पभवोबन्धो।
-दशवकालिक नियुक्ति ४६ आत्मा को कर्म-बन्ध मिथ्यात्व आदि हेतुओ से होता है। २०. सयमेव कहिं गाहइ, नो तस्स मुच्चेज्जऽपुठ्ठयं ।
-सूत्रकृतांग १।२।११४ आत्मा अपने स्वय के कर्मो से ही बन्धन मे पड़ता है । कृत-कर्मों
को भोगे बिना मुक्ति नही है। २१. पक्के फलम्हि पडिए, जह ण फल बज्झए पुणो विटे। जीवस्स कम्मभावे, पडिए ण पुणोदयमुवेई ।
-समयसार १६८ जिस प्रकार पका हुआ फल गिर जाने के बाद पुन वृन्त में नहीं लग सकता, उसी प्रकार कर्ग भी आत्मा से वियुक्त होने के बाद पुनः आत्मा (वीतराग) को नही लग सकते।