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________________ १६ ध्यान-साधना १. काउस्सग्गेणं तीयपडप्पन्नपायच्छित्तं विसोहेइ विसुद्धपाय च्छित्ते य जीवे निव्वुहियए ओहरियभारुव्व भारवाहे पसत्थज्झाणोवगए सुहं सुहेण विहरइ । -उत्तराध्ययन २६।१२ कायोत्सर्ग (ध्यान अवस्था में समस्त चेष्टाओ का परित्याग) करने से जीव अतीत एवं वर्तमान के दोषो की विशुद्धि करता है और विशुद्ध-प्रायश्चित्त होकर सिर पर से भार के उतर जाने से एक भारवाहकवत् हल्का होकर सद्ध्यान मे रमण करता हुआ सुख पूर्वक विचरता है। २. ध्यानं तु विषये तस्मिन्नेकप्रत्ययसंततिः । -अभिधानचिन्तामणि १८४ ध्येय मे एकाग्रता का हो जाना ध्यान है। चितस्सेगग्गया हवइ भाणं । -आवश्यकनियुक्ति १४५६ किसी एक विषय पर चित्त को एकाग्र--स्थिर करना ध्यान है । ४. मोक्षः कर्मक्षयादेव, स चात्मज्ञानतो भवेत् । ध्यानसाध्यं मतं तच्च, तद्ध्यानं हितमात्मनः । -योगशास्त्र ४।११३ १९०
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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