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तपोमार्ग
१८६ एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरगं।
-आचारांग ११४१३ आत्मा को शरीर से पृथक् जानकर भोगलिप्त शरीर को अर्थात् कर्मों को धुन डालो। कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पा ।
-आचारांग ११४१३ अपने को कृश करो; तन-मन को हल्का करो। अपने को जीर्ण करो, भोगवृत्ति को जर्जर करो।