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जैनधर्म की हजार शिक्षाएं
१७. अन्धादयं महानन्धो विषयान्धीकृतेक्षणः ।
-आत्मानुशासन ३५ विषयान्ध व्यक्ति अन्धो मे सबसे बड़ा अन्धा है। कामासक्तस्य नास्ति चिकित्सितम् ।
-नीतिवाक्यामृत ३३१२ कामासक्त व्यक्ति का कोई इलाज नही है । अर्थात् काम-रोग की ___ कोई चिकित्सा नही है। १६. तुमं चेव सल्लमाहट्ट ।
-आचारांग १२२।४ तू स्वयं ही अपना शल्य (काटा) है। अर्थात् तेरी विषयामक्त वृत्ति ही तेरे लिए काटा है। खणमित्तसुक्खा, बहुकालदुक्खा ।
-उत्तराध्ययन १४।१३ ससार के विषय भोग क्षण मात्र के लिए सुख देते है, किन्तु बदले
मे चिरकाल तक दुःखदायी होते है । २१. अदक्खु कामाई रोगवं।
-सूत्रकृतांग ११२।३।२ सच्चे साधक की दृष्टि मे काम-भोग रोग के समान है । २२. देवा वि सइंदगा न तित्ति न तुठ्ठि उवलभंति ।
- प्रश्नव्याकरण १२५ देवता और इन्द्र भी न (भोगों से) कभी तृप्त होते है और न
संतुष्ट। २३. वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परत्था ।
-उत्तराध्ययन ४/५