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________________ काम-विषय १८३ १२. अक्खाणि बहिरप्पा, अंतरअप्पा हु अप्पसंकप्पो। -मोक्षपाहुड ५ इन्द्रियों में आसक्ति बहिरात्मा है और अन्तरंग में आत्मानुभव रूप आत्मसंकल्प अन्तरात्मा है। चक्खिंदियदुदंतनणस्स, अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं जलणंमि जलंते, पडइपयंगो अबुद्धीओ ।। -ज्ञाताधर्मकथा २१७४४ चक्षष् इन्द्रिय की आसक्ति का इतना बुरा परिणाम होता है कि मूर्ख पतंगा जलती हुई आग में गिरकर मर जाता है । १४. विषीदन्ति--धर्म प्रति नोत्सहन्ते एतेष्विति विषयाः । -उत्तराध्ययन अ० ४ टीका जिनमें पड़ने मे प्राणी धर्म के उत्माह से हीन हो जाए, वे विषय हैं। १५. विषीयन्ते निबध्यन्ते विषयिणोऽस्मिन्निति विषयः । -भगवती ८२ टीका जिसमें विषयी प्राणी बंध जायें, उसका नाम विषय है। न काम भोगा समयं उति, न यावि भोगा विगई उति । जे तप्पओसी य परिग्गही य, मो तेस् मोहा विगई उवेइ । -उत्तराध्ययन ३२॥१०१ काम भोग-शब्दादि विषय न तो स्वयं में ममता के कारण होते • हैं और न विकृति के ही। किन्तु जो उनमें द्वेष या राग करता है, वह उनमें मोह से राग-द्वेप रूप विकार को उत्पन्न करता है।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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