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काम-विषय
जे गृणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गृणे ।
- आचारांग ११११५ जो काम-गुण हैं, इन्द्रियों के शब्दादि विषय हैं, वह आवर्त - संसार-चक्र है । और जो आवर्त है वह काम-गुण है। आतुरा परितावेति ।
- आचारांग ११११६ विषयातुर मनुष्य ही दूसरे प्राणियों को परिताप देते हैं । कामा दुरतिक्कम्मा।
- आचारांग ११२५ कामनाओं का पार पाना बहुत कठिन है । कामेसु गिद्धा निचयं करेंति ।
-आचारांग १३३२ कामभोगों में गृद्ध-आसक्त रहनेवाले व्यक्ति कर्मों का बन्धन करते हैं। मोहं जंति नरा असंवुडा!
-सूत्रकृतांग ११२१११२७ इन्द्रियों के दास असंवृत मनुष्य हिताहित-निर्णय के क्षणों में मोहमुग्ध हो जाते हैं।
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