________________
१८०
जैनधर्म की हजार शिक्षाएं वही व्यक्ति मनुष्यों में चक्षु के समान मार्गदर्शक हो सकता है,
जिसने तृष्णा का अंत कर दिया है। १५. असज्जमाणे अपडिबद्धे या वि विहरइ ।
-उत्तराध्ययन २६।३० जो अनासक्त है, वह सर्वत्र अप्रतिबद्ध-स्वतंत्ररूप से विचरता है। १६. ममत्तबंधं च महब्भयावहं ।
-उत्तराध्ययन १९९८ ममत्व का बंधन महा भय करनेवाला है ।