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जनधर्म की हजार शिक्षाएं
५. मणोसाहसिओ भीमो दुस्सो परिधावइ । तं सम्मं तु निगिण्हामि धम्मसिक्खाइ कंथगं ।
___उत्तराध्ययन २३२२८ यह मन बड़ा साहसिक, भयंकर दुष्ट घोड़ा है, जो बड़ी तेजी के साथ चारों ओर दौड़ रहा है । मैं धर्म शिक्षारूप लगाम से उस घोड़े को अच्छी तरह अपने वश में किये हुए हूं।
जइया मणु णिग्गंथ जिय तईया तुह णिग्गंथु । जइया तुह णिग्गंथ जिय, तो लब्भइ सिव पंथु ।
-योगसार ७३ हे जीव ! जब तेरा मन निम्रन्थ (रागयुक्त) हो जायगा, तभी तू सच्चा निम्रन्थ बनेगा, और जब सच्चा निम्रन्थ बनेगा तभी शिवपंथ मिलेगा।