________________
.
..
.
१६१ चारित्तंसमभावो।
-पंचास्तिकाय १०७ समभाव ही चारित्र है। ११. तणकणए सम्मावा पव्वज्जा एरिसा भणिआ।
-बोधपाहुर ४० तृण और कनक (सोना) में जब समानबुद्धि रहती है, तभी उसे
प्रव्रज्या (दीक्षा) कहा जाता है। ११ दुजणवयणचडक्कं, गिट्ठर कडुयं सहति सप्पुरिसा।
__-भावपाहुड १०७ सज्जन-पुरुप दुर्जनों के निष्ठुर और कठोर वचनरूप चपेटों को
भी समभावपूर्वक सहन करते हैं । १२. समभावः सामाइयं ।
-सूत्रकृतांगचूणि १२२२२ समभाव ही सामायिक है। १३. धम्मं णं आइक्खमाणा तुम्भे उवसमं आइक्खह । उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह ॥
-औपपातिकसूत्र ५८ प्रभो ! आपने धर्म का उपदेश देते हुए उपशम का उपदेश दिया
और उपशम का उपदेश देते हुए विवेक का उपदेश दिया। अर्थात धर्म का सार उपशम-समभाव है और समभाव का सार
है-विवेक ! १४. जह मम ण पियं दुक्खं जाणिम एमेव सव्ध जीवाणं । न हणइ न हणावेइ अ, सम मणइ तेण सो समणो॥
-अनुयोगद्वार १२६